दूसरों की निंदा करना उचित नहीं कुछ समय बाद यह वापस
हो सकती है
डा || चिलकमर्ति दुर्गाप्रसाद राव
8279469419
डा || काट्रगड्ड राजेन्द्रनाथ
9440134040
संस्कृतसाहित्य विशाल है और प्राचीन है और साथ ही आधुनिक सभी साहित्यिक प्रक्रियाओं का यह एक खजाना है। वह सभी सुभाषितों का भंडार भी है || सभी सुभाषित विनोद देने के साथ नीतिबोधक भी हैं
|| आदमी जितना भी महान हो किन्तु दूसरों की निंदा करना उचित नहीं है || निंदा करने से उस का मूल्य चुकाना पडेगा ||
एक बार भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी अपनी दोस्त और भगवान शिवजी की पत्नी पार्वती को देखने के लिए कैलाशपर्वत्त पर गयी थी । पार्वती ने लक्ष्मी का प्रेम और स्नेहपूर्वक
स्वागत और सत्कार किया। लक्ष्मी बहुत अमीर थी किन्तु पार्वती एक सरल और साधारण औरत थी | लक्ष्मी पार्वती का मजाक उडाना चाहती थी। इस लिए लक्ष्मी पार्वती
के घर को देख ने लगी । वह घर सामान्य था |
लक्ष्मी ने एक सवाल पूछा
(1)
भिक्षार्थी स क्व यात:? इस का तात्पर्य यह है भिखारी कहाँ गया ? सब को पता है की शिवजी भिक्षा मांगते हैं | इसीलिए लक्ष्मी ने ‘भिखारी’ शब्द का इस्तेमाल किया | वह शब्द सुन कर पार्वती
का मन बहुत उदास हुआ क्योंकि कोई औरत जब अपनी पति की निंदा अपने रिश्तेदार और दूसरे
लोग करते है वह उस से सहा नहीं जाता । लेकिन वह क्या कर सकती हैं? क्यों की लक्ष्मी अतिथि
के रुप में उन के घर आई थी | घर आये अतिथि
का अपमान करना धर्मं नहीँ । परंतु वह लक्ष्मी
को चुपचाप एक सबक सिखाना चाहती थी । उस ने जवाब दिया। सुतनु ! बलिमखे
ओह मेरी प्रियसुंदरि ! लक्ष्मि! वह बलिचक्रवर्ती द्वारा सम्पन्न होते हुए यज्ञ में भाग लेने के लिए गये होंगे।
पार्वती के उत्तर के पीछे विचार यह है कि सिर्फ उसके पति ही भिखारी नहीं लक्ष्मी के पति भी एक भिखारी हैं जो सिर्फ तीन कदम
जमीन के लिए राजा बली का दरवाजा खटखटाते है । इस अप्रत्याशित जवाब ने जैसे लक्ष्मी के
गाल पर एक थप्पड़ मारने की तरह लक्ष्मी को चौंका दिया। यह जवाब सुन लक्ष्मी को सामान्य स्थिति
में आने के लिए कुछ समय लगा |
सामान्यस्थिति में आने के बाद लक्ष्मी ने पार्वती को एक और सवाल पूछा । उसने पूछा (2) ताण्डवं क्वाद्य भद्रे? हे ! मेरी प्यारी पार्वति
! आज आपके पति कहाँ नृत्य कर रहे हैं ? इस सवाल को पूछने में लक्ष्मी का इरादा यह है कि भगवान शिव हमेशा कोई भी उपयोगी काम करे बिना
सिर्फ नृत्य में ही समय बिताते है। इस सवाल
से भी पार्वती की भावनाओं को चोट लगी। वह समझ गयी कि लक्ष्मी उसको तनाव में
डालना चाहती है। वह थोड़ी देर बाद तनाव से मुक्त हो गयी और उसने प्रतिवाद किया। मन्ये बृन्दावनान्ते
- मुझे उम्मीद है कि
वह ब्रिंदावन में नाचते है। पार्वती के जबाब का मुख्य विचार यह था कि न केवल उसके पति किन्तु
लक्ष्मी के पति भी नाचते हैं । लेकिन वहाँ उन दोनों के बीच एक बड़ा अंतर है। शिवजी
अकेले नाचते है, कृष्णजी
अन्य महिलाओं के साथ प्यार में मगन होकर नाचते है। ऐसा कहने में पार्वती का उद्देश्य यह हैं “ मेरे पति तुम्हारे पति की तुलना में बेहतर है " । इस मुलायम और तीखे जबाब को सुन लक्ष्मी हैरान हो गयी | उसने
अपनी भावनाओं को छुपाया और एक सवाल पूछा |
(3) क्व नु च मृगशिशु:? आप का सूण्ढवाला बच्चा किधर है?
यह सब अच्छी तरह जानते है कि
पार्वतीपुत्र भगवान गणेश का सिर हाथी का है
| लक्ष्मी का बेटा कामदेव या मन्मथ सब से ज्यादा सुंदर है और इनकी तुलना में गणेश जी उतने
सुन्दर नहीं हैं| लक्ष्मी द्वारा
किये अपने बेटे के बारे में इस कड़वी दुरालोचना ने
पार्वती को बहुत उदास कर दिया। तुरंत उसने उत्तर दिया
“ नैव जाने वराहम्
” यहाँ पर एक सुअर फिर रहा है और मेरा बेटा उसके साथ
घूमने के लिए गया होगा। पार्वती ने जवाब दिया मेरे बेटे
का सिर ही सिर्फ हाथी का है लेकिन आपके पति का पूरा शारीर सुअर जैसा है। मेरा बेटा आप के पति से बेहतर है | यह ज्ञात है कि भगवान विष्णु ने वराह
(सुअर) अवतार धारण किया था पृथ्वी की रक्षा
के लिए | लक्ष्मी फिर तीसरी बार सदमे में आगई | सदमे से बाहर आने के बाद अपनी अंदरूनी भावनाओं को छुपाती हुयी पार्वती से पूछा 4. बाले! कच्चिन्न
दृष्ट: जरठवृषपति: हे पार्वती आपके पति का वाहन पुराना बैल दिखाई नही देता
कहाँ गया होगा ? || इस प्रश्न को पूछने में
लक्ष्मी का इरादा यह था उन के पति का वाहन गरुड है जो बहुत तेज रफ्तार से आकाश में
उड़ता है । परन्तु शिवजी और उन की पत्नी एक
बूढा बैल जो उन का वाहन है उस पर सवारी करते है | हाजिर जवाबी में मशहूर पार्वती जी ने शांत
मन से एक बहुत कडा जवाब दिया। गोप एवास्य वेत्ता - यह सवाल मुझ से पूछने
से क्या फायदा | यह सवाल उस व्यक्ति से पुछो जो गायों को चराता है और उनकी देखबाल करता
है । मुझ से यह सवाल पूछना कोई माईना नहीं रखता | तुम्हारे पति जो
मवेशियों का पालन पोषण करते है वाही इस सवाल का जवाब दे सकते है ||
वास्तव में यह एक कल्पना है और इस उल्लासपूर्ण बातचीत का तथ्य यह है कि एक व्यक्ति
जितना भी महान हो लेकिन उसे दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिस नहीं करनी चाहिए
| लेकिन अगर आप करेंगे तो लेने का देना पड जाएगा | इस का तात्पर्य यह है कि इस सृष्टि में सब समान है न कोई बड़ा
न कोई छोटा | तो सावधान रहो । दूसरों को भी समझो । और उस की
आर्थिक स्थिति चाहे वह अमीर हों या गरीबा हों सब को एक समान देखो । कवि लक्ष्मी और
पार्वती का हसी मजाक का वाकया पेश कर
प्रार्थना करते है कि यह वार्तालाप हम सब को आशीर्वाद
दे || यह गंभीर अर्थ अपनी कुक्षि में रखनेवाला यह श्लोक देखिये ।
भिक्षार्थी स क्व यात? सुतनु बलिमखे ताण्डवं क्वाद्य भद्रे?
मन्ये बृन्दावनान्ते क्वनु च मृगशिशु? नैव जाने वराहम्
बाले! कच्चिन्न दृष्ट: जरठवृषपति: गोप एवास्य वेत्ता
लीलासल्लाप इत्थं जलनिधि हिमवत्कन्ययो: त्रायतां व: ||
(अप्पय्यदीक्षित जी ने विरचित कुवलयानन्दम् से)
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